नई दिल्ली. आज पुरे देश भर में भारत के महान राजा एवं रणनीतिकार छत्रपति शिवाजी महाराज की 393वीं जयंती (Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti) मनाई जा रही है। जिन्होंने पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। जिसके लिए उन्होंने मुगल साम्राज्य के शासक औरंगजेब से संघर्ष किया।
देवी के नाम पर रखा गया शिवाजी का नाम
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में पुणे के शिवनेरी दुर्ग नगर में हुआ था। उनके पिता का नाम शाहजी भोंसले और माता का नाम जीजाबाई था। शिवाजी महाराज या शिवाजी भोसले का नाम एक क्षेत्रीय देवी शिवाई के नाम पर रखा गया था और उन्हें एक उन्नत और सुव्यवस्थित नागरिक प्रशासन प्रणाली बनाने के लिए जाना जाता है। शिवाजी के पिता जी बीजापुर के दरबार में उच्चाधिकारी थे। उनका लालन पालन उनकी माता की देखरेख में में हुआ था। दादोजी कोंडदेव जी ने युद्ध का प्रशिक्षण और प्रशासन की शिक्षा शिवाजी को दी थी।
बटालियन में कई मुस्लिम सैनिकों की नियुक्ति
छत्रपति शिवाजी महाराज को उनके अद्भुत बुद्धिबल और अद्भुत पराक्रम के लिए जाना जाता था। वे पहले ऐसे भारतीय शासकों थे, जिनके बारे में कहा जाता है कि, उन्होंने महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र की रक्षा के लिए नौसेना बल की अवधारणा को पेश किया था। इसके अलावा सबसे बड़ी और खास बात ये है कि, उन्होंने अपनी बटालियन में कई मुस्लिम सैनिकों को भी इसके खास बल में नियुक्त किया था।
मराठी और संस्कृत वेब वार्ता को बढ़ावा
पिता शिवाजी भोंसले ने वर्ष 1674 में उन्हें औपचारिक रूप से छत्रपति या मराठा साम्राज्य के सम्राट के रूप में ताज पहनाया गया था। उस समय देश में फारसी वेब वार्ता का ज्यादा उपयोग होता था लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने अदालत और प्रशासन में मराठी और संस्कृत के उपयोग को बढ़ावा देने का भी अद्भुत फैसला किया था, जो कि उनकी दूरदर्शिता और राष्ट्र प्रेम के साथ देश की संस्कृति के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा को भी दर्शाता है।
मुगलों की संपत्ति पर कब्ज़ा
छत्रपति शिवाजी की मुगलों से पहली मुठभेड़ 1656-57 में हुई थी। उन्होंने मुगलों की ढेर सारी संपत्ति और सैकड़ों घोड़ों पर अपना कब्जा जमा लिया था। कहा जाता है 1680 में कुछ बीमारी की वजह से अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में छत्रपति शिवाजी की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उनके बेटे संभाजी ने राज्य की कमान संभाली थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती: इतिहास और महत्व
छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती मनाने की शुरुआत वर्ष 1870 में पुणे में महात्मा ज्योतिराव फुले द्वारा की गई थी। उन्होंने ही पुणे से लगभग 100 किलोमीटर दूर रायगढ़ में शिवाजी महाराज की समाधि की भी बड़ी खोज की थी। बाद में स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने इस जयंती को मनाने की परंपरा को आगे बढ़ाया और उनके योगदान पर यथेष्ट प्रकाश डालते हुए शिवाजी महाराज की छवि को और भी प्रचंड रूप से लोकप्रिय बनाया।
उन्होंने ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़े होकर शिवाजी महाराज जयंती के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोगों को एक साथ लाने में एक बड़ी ही अहम भूमिका निभाई थी। उनकी यही पराक्रम और योगदान हमेशा से ही लोगों को हिम्मत देता रहे, इसीलिए उनके देशप्रेम और पराक्रम की याद में हर साल यह जयंती मनाई जाती है।