ओबरा सोनभद्र बाबा भूतेश्वर दरबार महा रूद्र सेवा समिति में विवाद, अध्यक्ष पद को लेकर घमासान

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ओबरा सोनभद्र बाबा भूतेश्वर दरबार महा रूद्र सेवा समिति में विवाद, अध्यक्ष पद को लेकर घमासान
– विपक्ष में समिति के चुनाव को लेकर काफी हलचल

सोनभद्र ब्यूरो चीफ दिनेश उपाध्याय-(ओबरा/सोनभद्र/उत्तर प्रदेशडिजिटल भारत न्यूज टुडे नेटवर्क 24×7 LIVE

ओबरा/सोनभद्र। बाबा भूतेश्वर दरबार महा रूद्र सेवा समिति में आगामी 10 जुलाई को होने वाले चुनाव से पहले ही विवाद गहरा गया है, जिसने समिति की कार्यप्रणाली और पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। समिति के प्रबंधक ने 25 जून, 2025 को तत्काल प्रभाव से समिति को भंग कर दिया था, जिसकी विधिवत सूचना समाचार पत्रों के माध्यम से सभी सदस्यों और पदाधिकारियों को दी गई थी। इस कदम का उद्देश्य संभवत एक नई और अधिक जवाबदेह समिति का गठन करना था। समिति भंग होने के बावजूद, वर्तमान में रह चुके अध्यक्ष और कुछ सदस्यों ने 6 जुलाई, 2025 को एक सूचना जारी की, जिसमें उन्होंने खुद को अध्यक्ष बताते हुए एक कोर कमेटी का नाम दिया। यह कार्रवाई तब की गई है जब समिति के नियमानुसार, एक बार भंग होने के बाद कोई भी पद दोबारा चुनाव होने तक मान्य नहीं रहता।

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समिति के नियमों के अनुसार, प्रबंधक/सचिव ही कोई भी आधिकारिक सूचना जारी करने के लिए अधिकृत होते हैं। इस प्रकार, यह सूचना अवैध मानी जा रही है और इसे समिति के नियमों का उल्लंघन बताया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, बाबा भूतेश्वर दरबार महारुद्र सेवा समिति में अध्यक्ष का कार्यकाल 2 साल का होता है। निवर्तमान अध्यक्ष विकास तिवारी ने समिति भंग होने से पहले ही अपना 2 साल का कार्यकाल पूरा कर लिया था। उनके कार्यकाल में दो शिवरात्रि और दो छठ जैसे प्रमुख त्योहार संपन्न हुए। हालांकि, गंभीर आरोप यह हैं कि विकास तिवारी ने अपने 2 साल के कार्यकाल के दौरान छोटे-मोटे त्योहारों पर हुए खर्च और दान पेटिका से प्राप्त धन का कोई भी हिसाब समिति के कार्यकर्ताओं के बीच नहीं रखा, न ही सूचना पट पर इसकी कोई जानकारी चिपकाई। यह पारदर्शिता की कमी समिति के सदस्यों और आम जनता के बीच संदेह पैदा कर रही है। अब यह आरोप लग रहे हैं कि कुछ लोगों को मिलाकर, साजिश के तहत संस्था का दोबारा अध्यक्ष बने रहने का प्रयास किया जा रहा है। यदि उनकी मंशा ऐसी नहीं थी, तो समिति भंग होने के बाद कोर कमेटी का नाम लेकर सूचना जारी करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। समिति से जुड़े कई सदस्यों का यह भी कहना है कि जब कोई अध्यक्ष अपना कार्यकाल पूरा कर लेता है और उसे पद से हटाया जाता है, तो वे विपक्षी काम करने लगते हैं, मानो उन्हें आजीवन अध्यक्ष पद के लिए अधिकार दे दिया गया हो। सदस्यों का मानना है कि हर व्यक्ति को 2 साल के लिए अध्यक्ष बनकर मंदिर और समिति के तत्वाधान में काम करना चाहिए, लेकिन 2 साल पूरे होने के बाद कुछ अध्यक्ष मनमानी करने लगते हैं और विपक्षी कार्यप्रणाली अपना लेते हैं। समिति के प्रबंधक द्वारा पहले ही 10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के दिन भंडारे के आयोजन और नई कमेटी के गठन की सूचना तमाम समाचार पत्रों के माध्यम से दी जा चुकी है। यदि निवर्तमान अध्यक्ष या उनके समर्थकों को कोई बात रखनी थी, तो वे समाज में जुट रहे सभी सदस्यों और समिति सेवकों के बीच अपनी बात रख सकते थे।इस घटनाक्रम से समिति के भीतर तनाव बढ़ गया है, और सभी की निगाहें 10 जुलाई को होने वाले भंडारे और नई कमेटी के गठन पर टिकी हैं, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या समिति में पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल किया जा सकेगा।

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