विंढमगंज में माँ काली मंदिर परिसर में भव्य बली प्रथा का आयोजन सम्पन्
विंढमगंज (सोनभद्र)।
नवरात्रि के पावन अवसर पर विंढमगंज स्थित माँ काली मंदिर परिसर में दिनांक 01 अक्टूबर 2025 को परंपरागत बाली प्रथा का आयोजन बड़े ही श्रद्धा और उत्साह के साथ सम्पन्न किया गया। इस विशेष अवसर पर मंदिर प्रांगण में भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्र हुए और पूरे धार्मिक भाव से माँ काली की आराधना में लीन होकर कार्यक्रम को सफल बनाया।
इस बाली प्रथा के तहत परंपरा अनुसार भथुआ की बली अर्पित की गई। यह परंपरा वर्षों से विंढमगंज क्षेत्र में नवरात्रि के दिनों में निभाई जाती रही है, ऐसा मानता है की बाली माता के क्रोध को शांत करने के लिए दिया जाता है जिससे माता प्रसन्न होकर अपना कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं जिसे स्थानीय लोग अपनी आस्था और परंपरागत धरोहर से जोड़कर देखते हैं। भथुआ की बाली देने की परंपरा को लोग शुभ और मंगलकारी मानते हैं तथा विश्वास करते हैं कि इससे क्षेत्र में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है।
कार्यक्रम में माँ काली मंदिर पीठ के अध्यक्ष श्री रविशंकर जायसवाल उपस्थित रहे। उन्होंने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि बली प्रथा हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस परंपरा को निभाना केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है।
इस अवसर पर प्रबंधक श्री अशोक जायसवाल सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे। इनमें प्रमुख रूप से राजेश गुप्ता, पंकज गुप्ता, सुमित राज कसकर, रविंद्र नाथ जायसवाल, पप्पू गुप्ता, नंदलाल केसरी और एडवोकेट कृष्णानंद तिवारी व अन्य समिति के सदस्यों का सहयोग रहा सभी अतिथियों ने संयुक्त रूप से कार्यक्रम को सफल बनाने में सहयोग प्रदान किया और उपस्थित श्रद्धालुओं को नवरात्रि की शुभकामनाएँ दीं।

पूरे कार्यक्रम के दौरान मंदिर प्रांगण में भक्तिमय वातावरण बना रहा। मां काली के जयकारों से गूंजता परिसर आस्था और भक्ति की अद्भुत छटा बिखेर रहा था। श्रद्धालु महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में पूजन-अर्चन किया, वहीं बच्चों और युवाओं में भी इस आयोजन को लेकर उत्साह देखने को मिला।
स्थानीय ग्रामीणों ने आयोजन समिति की इस पहल की सराहना की और कहा कि ऐसे धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम क्षेत्र में सामाजिक एकजुटता और आपसी भाईचारे को और अधिक मजबूत करते हैं।

इस तरह नवरात्रि के अवसर पर सम्पन्न हुई बाली प्रथा ने न केवल परंपरा को जीवित रखा बल्कि श्रद्धालुओं को माँ काली के चरणों में भक्ति और विश्वास के साथ जोड़ने का कार्य भी किया।


