नवरात्र पर उमड़ा आस्था का सैलाब: मां चतुर्भुजी भगवती मंदिर, केतार में गूंजे जयकारे

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“नवरात्र पर उमड़ा आस्था का सैलाब: मां चतुर्भुजी भगवती मंदिर, केतार में गूंजे जयकारे”

केतार (गढ़वा/झारखंड)।शारदीय नवरात्र की पावन बेला में गढ़वा जिले के केतार स्थित प्राचीन मां चतुर्भुजी भगवती मंदिर में आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा है। मां भगवती के दरबार में सुबह से ही श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लग रही हैं। “जय माता दी” के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा है। यह शक्ति-पीठ झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश तक के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है।

ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व-

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार मां चतुर्भुजी भगवती की प्रतिमा अति प्राचीन है। लोककथाओं में उल्लेख मिलता है कि जब सोनपुरा राज्य के राजा इस प्रतिमा को अपने राज्य में ले जाने का प्रयास कर रहे थे, तो हाथी प्रतिमा लेकर चलते-चलते केतार में ही बैठ गया और आगे बढ़ने से इनकार कर दिया। इसे माता की इच्छा माना गया और यहीं प्रतिमा स्थापित कर दी गई। तभी से यह स्थान शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र बन गया।

मंदिर के गर्भगृह में माता की अष्टधातु से निर्मित प्रतिमा और चांदी से निर्मित विशेष श्रीयंत्र स्थापित है, जो श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है।

नवरात्र पर विशेष पूजा-अर्चना-

नवरात्र के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान आयोजित किए जा रहे हैं। प्रतिदिन भोर में मां भगवती की आरती से कार्यक्रम की शुरुआत होती है। भक्तगण दुर्गा सप्तशती का पाठ, हवन और भजन-कीर्तन करते हैं। दिनभर भक्तों की भीड़ लगी रहती है। पुजारियों की ओर से माता के दरबार में विशेष श्रृंगार और पुष्पांजलि अर्पित की जा रही है।

एक माह तक चलने वाला मेला-

नवरात्र के अवसर पर लगने वाला केतार मेला पूरे एक महीने तक चलता है। चैत्र नवरात्र से शुरू होकर वैशाख पूर्णिमा तक और शारदीय नवरात्र से कार्तिक पूर्णिमा तक यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। मेले में धार्मिक आयोजन के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। रात में भक्ति संगीत, जगराता और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां आयोजित की जाती हैं। इसके अलावा मेले में झूले, खिलौने, मिठाइयाँ और स्थानीय व्यंजनों की दुकानें भी लगी हुई हैं, जो लोगों को आकर्षित करती हैं।

श्रद्धालुओं की अटूट आस्था-

श्रद्धालुओं का मानना है कि मां चतुर्भुजी भगवती के दरबार में सच्चे मन से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती। मनोकामना पूरी होने पर भक्त नारियल, चुनरी और इलायची का प्रसाद चढ़ाते हैं। दूर-दराज़ से आने वाले श्रद्धालु माता के दर्शन कर आत्मिक शांति का अनुभव करते हैं।

सुरक्षा और प्रशासनिक इंतज़ाम-

नवरात्र और मेले को देखते हुए जिला प्रशासन और मंदिर विकास समिति की ओर से विशेष इंतजाम किए गए हैं। सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस बल की तैनाती की गई है। साथ ही, स्वास्थ्य विभाग की ओर से प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और एम्बुलेंस की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। मंदिर परिसर में साफ-सफाई, पेयजल, प्रकाश व्यवस्था और यातायात की उचित व्यवस्था की गई है।

आर्थिक और सामाजिक महत्व-

मेला न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सशक्त करता है। दूर-दराज़ से आने वाले लोग यहां ठहरते हैं, खरीदारी करते हैं और स्थानीय व्यापार को बढ़ावा देते हैं। छोटे दुकानदारों और हस्तशिल्पियों के लिए यह मेला रोज़गार का बड़ा अवसर बनता है।

धार्मिक पर्यटन का केंद्र-

केतार का चतुर्भुजी भगवती मंदिर न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना रहा है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं, जिससे यह स्थान धार्मिक पर्यटन का केंद्र बन गया है। झारखंड सरकार और स्थानीय प्रशासन मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में भी प्रयासरत हैं।

समापन:-

नवरात्र के इस पावन अवसर पर केतार की पावन धरा भक्तिरस से सराबोर है। मां चतुर्भुजी भगवती के दरबार में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ इस बात का प्रतीक है कि आस्था की डोर आज भी लोगों को एकजुट करती है। मेले की चहल-पहल, मंदिर की भव्यता और भक्तों का उत्साह मिलकर यहां एक ऐसा माहौल बना रहे हैं, जो न केवल धार्मिक आस्था का परिचायक है बल्कि सांस्कृतिक समृद्धि का भी दर्पण है।

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