मां काली मंदिर विंढमगंज में जितिया पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया |
विंढमगंज, 14 सितम्बर।
स्थानीय मां काली मंदिर परिसर में रविवार को जितिया पर्व बड़े ही हर्षोल्लास, पारंपरिक रीति-रिवाज और गहन श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाया गया। सुबह से ही मंदिर परिसर में ग्रामीण महिलाओं की अपार भीड़ उमड़ पड़ी। विवाहित माताओं ने अपनी संतान की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हुए निर्जला व्रत रखकर जीवितपुत्रिका माता की पूजा-अर्चना की।

सुबह से ही मंदिर प्रांगण में धार्मिक माहौल बना रहा। महिलाओं ने रंग-बिरंगे परिधान और पारंपरिक साड़ियों में सजधजकर मंदिर पहुंचकर विधि-विधान के साथ पूजा की। पूजा-पाठ के दौरान पूरा वातावरण मंगल ध्वनियों, शंखनाद और घंटियों की गूंज से गुंजायमान हो उठा। श्रद्धालुओं द्वारा जीवितपुत्रिका माता और मां काली के जयकारे लगने से माहौल और भी भक्तिमय हो गया।
दिनभर मंदिर परिसर में भक्ति गीतों और भजन की मधुर धुनें गूंजती रहीं। दोपहर तक महिलाएं पूजा-अर्चना में व्यस्त रहीं तो वहीं शाम को विशेष भजन-कीर्तन और संध्या आरती का आयोजन किया गया। आरती में शामिल होने के लिए न केवल महिलाएं बल्कि पुरुष, बच्चे और बुजुर्ग भी बड़ी संख्या में मौजूद रहे। संध्या आरती के बाद श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरण किया गया, जिसे पाकर सभी भक्त धन्य हो उठे।
ग्राम की रीना देवी ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा – “हम हर साल जितिया का व्रत करती हैं। इस व्रत का महत्व हमारी परंपरा और संस्कृति से गहराई से जुड़ा है। माता से यही प्रार्थना है कि हमारे बच्चों को दीर्घायु और सुखमय जीवन मिले।”
वहीं ममता देवी ने बताया – “जितिया पर्व हमारी आस्था का प्रतीक है। इस दिन किए गए उपवास और पूजा से संतान की रक्षा होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।”
मां काली मंदिर के पुजारी पंडित नन्दू तिवारी जी ने पर्व के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा – “जितिया पर्व संतान की मंगलकामना का पर्व है। इसे पूर्ण श्रद्धा और विधिपूर्वक करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है। यह पर्व मातृत्व और संतान के अटूट रिश्ते का प्रतीक माना जाता है।”
ग्रामीणों का कहना है कि मां काली मंदिर में हर वर्ष जितिया पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है और यहां का आयोजन संपूर्ण क्षेत्र में धार्मिक उत्साह का केंद्र बन जाता है। आसपास के गांवों से भी बड़ी संख्या में महिलाएं और श्रद्धालु इस दिन मंदिर पहुंचते हैं। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि मां काली की कृपा और जीवितपुत्रिका माता का आशीर्वाद संतान को संकटों से दूर रखता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जितिया व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है। महिलाएं सूर्योदय से पहले स्नान कर निर्जला उपवास रखती हैं और अगले दिन सूर्योदय के बाद ही व्रत का पारण करती हैं। व्रत के दौरान महिलाएं फलाहार या जल तक ग्रहण नहीं करतीं। उनका विश्वास है कि यह कठिन व्रत करने से संतान की रक्षा होती है और परिवार में समृद्धि बनी रहती है।
इस अवसर पर मंदिर प्रांगण में मेले जैसा माहौल भी दिखाई दिया। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए स्थानीय युवाओं ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। कई लोगों ने भजन-कीर्तन के आयोजन में सहयोग किया और प्रसाद वितरण में मदद की।
अंत में, संध्या आरती और प्रसाद ग्रहण के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। पूरे आयोजन ने यह साबित किया कि परंपरा और संस्कृति आज भी समाज को जोड़ने का काम कर रही है। मां काली मंदिर में मनाया गया जितिया पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक रहा बल्कि यह सामाजिक एकजुटता और सामूहिक श्रद्धा का अद्भुत उदाहरण भी बना।


