सुहागिनों ने वट वृक्ष के नीचे वट सावित्री की पूजा कर पति के लंबे उम्र की मांगी मन्नते l
पति एवं पुत्र के सुख समृद्धि एवं दीर्घायु के लिए किया कामना, मांगे वट वृक्ष से वरदान
(दुद्धी सोनभद्र )- दुद्धी क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर वट सावित्री पूजा को लेकर सुबह 4:00 बजे बरगद के विशालकाय पेड़ों के नीचे सुहागीनों के द्वारा पवित्र मन से सोलह श्रृंगार एवं पूजा सामग्री के साथ घंटो तक बरगद के पेड़ में सिंदूर टीका लगाकर बॉस के बेने व फल्हार वस्तु,कपडे सहित अन्य सामग्रियां व जल चढाकर अपने भाव को वट वृक्ष मे अर्पित किया l पूजा उपरांत सभी सुहागिनों ने ब्राह्मणों से वट सावित्री व्रत की कथा को श्रवण किया, ब्राह्मण को दक्षिणा( दान )करने उपरांत अपने अपने घरों मे पति को नींबू का शरबत एवं बॉस के बेने से हवा देकर और उनके पैर छूकर घर के बड़े बुजुर्ग परिजनों का भी आशीर्वाद प्राप्त कर नींबू का शरबत पीकर व्रत को तोड़ा l वही क्षेत्र में देखा गया कि इस पवित्र पूजा को लेकर सभी क्षेत्र के बरगद वृक्ष के नीचे समाजसेवी एवं जनप्रतिनिधियों के द्वारा साफ सफाई कर,टेंट तंबू की व्यवस्था एवं पीने हेतु जल की व्यवस्था की गई थी, कथा सुन रहे महिलाओ ने बताया कि वट सावित्री व्रत पूजा में विभिन्न सामग्रियों एवं अनुष्ठानों को सुहागिनों के द्वारा किया जाता है जिसमे
कच्चा सूत, जल से भरा कलश, हल्दी, कुमकुम, फूल और पूजन की सभी सामग्री लेकर जहां वट वृक्ष है, वहां पर जाते है एवं वट वृक्ष पर जल अर्पित कर और उसके समक्ष देसी घी का दीपक जलाया जाता है l इसके बाद सभी पूजन सामग्री एक-एक करके भाव के साथ अर्पित करते है । फिर पेड़ के चारों ओर 7 बार परिक्रमा और उसके चारों ओर सफेद कच्चा सूत लपेटा जाता है l और पूजा कार्य किया जाता है यह पूजा सती सावित्री के द्वारा अपने पति सत्यवान के प्रराण यमराज से छीन कर वापस लाये गए थे,और इसी बरगद वृक्ष के नीचे उनके पति के प्राण पखेरू परलोक से पुनः वापस ले आई थी जिसके उपरांत वह जीवित हुए थे,तब से इस वट सावित्री व्रत की पूजा कालांतर से चलती आ रही है l जो पति व पत्नी के अटूट रिश्ते प्रेम को दर्शाता है l