आदिवासी समाज ने उठाई आरक्षण बढ़ाने की मांग, कहा- “जनसंख्या के अनुपात में मिले भागीदारी”

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आदिवासी समाज ने उठाई आरक्षण बढ़ाने की मांग, कहा- “जनसंख्या के अनुपात में मिले भागीदारी”

दुद्धी, सोनभद्र। स्थानीय तहसील मुख्यालय पर स्थित एक निजी धर्मशाला में शुक्रवार को आदिवासी समाज की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग दूर-दराज़ के गाँवों से पहुँचकर शामिल हुए। बैठक का मुख्य उद्देश्य था – आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में आदिवासी समाज को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण दिलाने की रणनीति बनाना।

बैठक के मुख्य अतिथि श्रवण सिंह गोंड ने अपने संबोधन में कहा कि लोकतंत्र का असली अर्थ तभी पूरा होता है जब समाज के सभी वर्गों को बराबरी से प्रतिनिधित्व मिले। उन्होंने कहा, “जिसकी जनसंख्या जितनी, उसकी भागीदारी उतनी होनी चाहिए। आदिवासी समाज लंबे समय से उपेक्षा का शिकार रहा है, इसलिए अब हमें संगठित होकर अपनी बात मजबूती से रखनी होगी।”

कार्यक्रम की अध्यक्षता रामविचार टेकाम ने की। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि आदिवासी समाज को अब जागरूक होकर अपनी एकजुटता का परिचय देना होगा। उन्होंने कहा कि यदि हम एक होकर अपनी माँगों को सामने रखेंगे तो सरकार को हमारी बात सुननी ही पड़ेगी। उन्होंने यह भी बताया कि बहुत जल्द आदिवासी समाज अपने प्रतिनिधिमंडल के साथ मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी माँगों को सीधे प्रस्तुत करेगा।

आदिवासी बहुल क्षेत्रों की उपेक्षा का आरोप-

बैठक में वक्ताओं ने बताया कि प्रदेश के 19 जिलों में आदिवासी समुदाय निवास करता है। इनमें सोनभद्र, मिर्ज़ापुर और ललितपुर जैसे जिले आदिवासी बहुल माने जाते हैं। वक्ताओं का आरोप था कि सरकार ने पंचायत चुनावों में आरक्षण का बँटवारा करते समय इन जिलों की अनदेखी की है।

सोनभद्र जिले का उदाहरण देते हुए कहा गया कि यहाँ आदिवासी जनसंख्या सबसे अधिक है, लेकिन आरक्षण बेहद कम मिला है। आंकड़ों के अनुसार जिले में जनसंख्या के अनुपात से आदिवासी समाज को लगभग 131 सीटें मिलनी चाहिए थीं, जबकि सरकार ने मात्र 28 सीटें ही आरक्षित की हैं। यही स्थिति मिर्ज़ापुर और ललितपुर जिलों में भी है, जहाँ अपेक्षा से बहुत कम सीटें दी गई हैं।

श्रवण सिंह गोंड ने कहा कि यह न केवल अन्याय है बल्कि संवैधानिक प्रावधानों के भी खिलाफ है। उन्होंने मांग की कि सरकार तुरंत प्रभाव से पुनर्विचार कर सीटों की संख्या बढ़ाए, अन्यथा आदिवासी समाज आंदोलन करने पर विवश होगा।

“अब चुप नहीं रहेंगे”

बैठक में उपस्थित अन्य नेताओं ने भी तीखी प्रतिक्रियाएँ दीं। उन्होंने कहा कि वर्षों से आदिवासी समाज अपने अधिकारों से वंचित होता आ रहा है। यह वह समय है जब सभी को मिलकर एक आवाज़ में अपनी माँग उठानी होगी। वक्ताओं का मानना था कि अगर अब भी समाज चुप रहा तो आने वाली पीढ़ियाँ भी अधिकारों से वंचित रह जाएँगी।

व्यापक भागीदारी-

बैठक में फ़ौदार सिंह परस्ते, सुषमा सिंह गोंड, शम्भू सिंह, नागेश्वर गोंड, विजय सिंह, विष्णु सिंह एडवोकेट, प्रभु सिंह गोंड, रामरती गोंड, विनोद कुमार आयाम, लल्लन खरवार, रामफल गोंड, रमाशंकर खरवार समेत सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया। बैठक का संचालन फ़ौदार सिंह परस्ते ने किया।

निष्कर्ष- बैठक का मुख्य संदेश साफ था – आदिवासी समाज अब अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए तैयार है। नेताओं और समुदाय के लोगों ने स्पष्ट किया कि आरक्षण का अधिकार केवल कागज़ों तक सीमित न रहे, बल्कि जनसंख्या के अनुपात में वास्तविक भागीदारी सुनिश्चित हो। आदिवासी समाज ने यह भी संकेत दिया कि यदि उनकी माँगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में बड़े आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी।

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